बुधवार, 7 जुलाई 2010

अद्भुत संरचना


कुहासे में निकली धूप
जब सुबह खेत में आती है,
तब देख प्रकृति का रूप
ये धरती इठलाती है।
पेड़ों की पत्ती पर
ओस की बूंदों से
जब सूरज मिलने आऐ....
तब नन्ही सी उन बूंदों की
अनुपम आभा बढ़ सी जाऐ।
वे स्वर्ण मई नन्ही बूंदें
धरती का श्रंगार करें,
तब इस धरती पर मनुज रूप में
ईश्वर भी अवतार धरे।
इस अपनी अद्भुत संरचना पे
वो मुदित हुए न रह पाए,
और लोक-लोक में जा-जा के
इसकी वे गाथा गाऐ।

1 टिप्पणी:

  1. tumhara saar dekha. kaafi sundar tasveeron aur chhanbadh lay yukt kavitaon ki pankitiyon aur unke aakarshak sheershakon se saja ek adbhut swarnmayi aabha ko sanjoye tumhari prastutiya aviral nirantar lok drishti se aachhadit hoti rahengi. aage bhi aise prayas tumhari or se safalta ke sheersh ko prapt karengi, aisa mera atut vishwas hai. snehashish ke sath. shatadal mitra.

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