रविवार, 18 जुलाई 2010

प्रार्थना


हे आराध्य साध्य करना तुम हमारे लक्ष्य को
लक्ष्य जन हित में हो,ज्ञान सागर प्रस्फुटित हो
है ऐसी कामना, है ऐसी प्रार्थना
चल पड़े हम लक्ष्य ले कर, अंत नहीं जानते
है भरोसा हमको तुझ पे, ऐसा सब है मानते
कीर्ति फैले हमारी, उद्देश्य की पूर्ति हो
देना हमको ऐसी शक्ति, कि कार्य निर्विघ्न हो
है ऐसी कामना ,है ऐसी प्रार्थना ।

प्यारी दुनियाँ


प्यारी दुनियाँ प्यारी ,प्यारी दुनियाँ प्यारी
बच्चे बिल्कुल फूल के जैसे
जैसा तुम सवांरोगे
बगिया उतनी सुन्दर होगी
जैसा तुम निखारोगे
माली होगा जैसा
वैसी बगिया होगी न्यारी
प्यारी दुनियाँ प्यारी, प्यारी दुनियाँ प्यारी

शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

आने वाला कल


मैं नहीं जानता क्या होगा,
पर जो होगा अच्छा होगा,
आने वाला कल सबका,
बेहतर से बेहतर होगा ।
नई आस -विश्वास लिए,
नव स्वप्नों की स्वांस लिए,
मन में नव उल्लास लिए,
जो होगा बेहतर होगा । मैं नहीं .....
छिपे हुए परिणामों में,
अप्रत्याशित कामो में,
जीवन के पैगामों में,
जो भी होगा बेहतर होगा । मैं नहीं .....
कलम चल चुकी है उसकी,
हमें देख रही नज़र जिसकी,
उसको है खबर सबकी,
सभी काम उत्तम होगा । मैं नहीं ......

मिलन


रवि(सूर्य) की आस लगाऐ वसुधा(पृथ्वी),
बैठी आँख बिछाऐ वसुधा
कहती-
नित जब तुम करते स्पर्श हमारा,
सृजित होऐ तब जीवन धारा
जब दूत(सूर्य कि किरण) भी आता तेरा ,
कोई संदेश लाता तेरा,
अंधकार छा जाता मन में,
शिशिर लिपट है जाता तन में,
साँसें धीमी पड़ जाती है,
पलकें झुक-झुक सी जाती हैं
तुझको भी दुःख होता है
जब तेरा वैभव सोता है
पीड़ा समझूँ तेरी सारी,
कि तेरी है कुछ लाचारी
इस धूल भरी आंधी(घना कोहरा) में तेरी राह भटक सी जाती है,
तू करता है कोशिश फिर भी, पर बात नहीं बन पाती है
मैं जानू-
तू लगा सतत मुझको पाने को,
जीवन में मेरे आने को,
डिगा सकता कोई तुझको,
अलग नहीं कर सकता मुझको,
मिलन हमारा सतत रहेगा,
जब तक जीवन सृजित रहेगा
मिटा सके संयोग हमारा ऐसी आंधी कब तक आएगी,
बाधाऐ चाहें जितनी हों सब की सब मिटती जाएगीं

गुरुवार, 15 जुलाई 2010


चेहरा मन का दर्पण है,
दिल की दर्पण आँखें
आँखों से इज़हार करें ,
स्वीकार
करें तब आँखें



बुधवार, 7 जुलाई 2010

अद्भुत संरचना


कुहासे में निकली धूप
जब सुबह खेत में आती है,
तब देख प्रकृति का रूप
ये धरती इठलाती है।
पेड़ों की पत्ती पर
ओस की बूंदों से
जब सूरज मिलने आऐ....
तब नन्ही सी उन बूंदों की
अनुपम आभा बढ़ सी जाऐ।
वे स्वर्ण मई नन्ही बूंदें
धरती का श्रंगार करें,
तब इस धरती पर मनुज रूप में
ईश्वर भी अवतार धरे।
इस अपनी अद्भुत संरचना पे
वो मुदित हुए न रह पाए,
और लोक-लोक में जा-जा के
इसकी वे गाथा गाऐ।

नाराज़ी के राज़

नाराज़ी के राज़ भी हमको ख़ूब सुहाने लगते हैं ,
जब रूठ गया होता है कोई लोग मनाने लगते हैं

सोने की चिड़िया



बदरी की जब घटा हटा कर
नव
ज्योति धरती पर पहुची,

सोने की चिड़िया पिंजरे से
सुन्दर
नील गगन में पहुँची
देख रही है धरती उसको
देख
रहा है अम्बर,

चह- चहक कर,फुदक-फुदक कर,
चिड़िया पहुंची घर-घर
मधुर मोहनी कलरव उसका
करता यही प्रचार,
जीत हमेशा सच की होती
हारे अत्याचार

मंगलवार, 6 जुलाई 2010

तस्वीर


मैं समंदर के किनारे बैठ कर इस रेत पे,
जाने कितने ही घरौंदे गिराता- बनाता जा रहा
उंगलियों से-बीच में,
इस मख़मली सी रेत पे,
इक अजनबी तस्वीर का ख़ाका बनता जा रहा
सामने बैठा समंदर बढ़ रहा मेरी तरफ,
साथ में लहरों की गर्जन वो है लाता जा रहा
पर पास देखता है मेरी तस्वीर को,
तब दे बधाई ,मुस्कुरा के, मौन लौटा जा रहा

सोमवार, 5 जुलाई 2010

अरुण

भोर -अरुण -प्रकाश।
नव जीवन -नव विश्वास।।
आशाओं का पुंज।
इक अद्भुत अनुगुंज ।।
नए सृजन की द्रृष्टि।
उज्वल होती स्रष्टि।।
अविरल एक प्रवाह।
सद जीवन का निर्वाह।।
राह दिखता नित हमें,
हर एक एहसास ।

रविवार, 4 जुलाई 2010

गाँव



निबियाँ की छैयाँ
और मंद सी बयार ,
कोल्हू का चक्कर
और रस की धार,
गुड की भेली
और अम्मा का प्यार ,
दे जाता हमको
खुशियां अपार

बरखा


घटा सुहानी बादल घुमड़े,
चीं
चीं कर चिड़िया दल उमड़े,
ठंडी ठंडी हवा बहे जब,
बरखा रानी जाती तब

माँ


निःस्वार्थ अविरल कर्म में लग जाती है माता,
जीवन का दुरूह कर्म भी है उसको भाता ,
ख़ुद को पीड़ित कर के भी वो सब को सुख पहुंचाती,
इस सब पर भी औरों को वो अभिमान दिखाती

शनिवार, 3 जुलाई 2010

स्वप्न


अंतरिक्ष में नाव चले और जल में चले विमान,
पेड़ो पे लटकी हो टाफी,फूल किसी दुकान
ऐसे यदि कुछ अजब सलोने सपने हो साकार,
बदला
होगा इस दुनिया का पूरा ये आकार

शुक्रवार, 2 जुलाई 2010

प्रकृति और विज्ञान,

प्रकृति को चीरता विज्ञान,
अंतरिक्ष में उड़ता विमान
खेतों के मध्य गुज़रती रेल,
कर
रही अपना खेल

हवा को भेदता संगीत,
नहीं लगता अब मृदु गीत
सूखे पेड़ों का तना अब
घरों की शोभा बढाता है
तो यही लगता है
कोई
अंगूठा टेक मास्टर सब को ढाता है