सोमवार, 4 अप्रैल 2011

रास


कर रहे रास सरिता-समीर
इस चंदा की परछाँई में,
मीन भर रही रंग अनेकों
रात की इस तनहाई में।
तारों की झिलमिल-झिलमिल से
हो रहा है जग,जगमग-जगमग,
ढूंढे जाते राज़ अनेकों
जुगनू
की परछाँई में।
अनिल-नीर अठखेली करते,
प्रीति जताते,आँहें भरते,
पल पल में आमंत्रण करते,
एक दूजे के होते हर पल,
..रास सिखाते इस दुनिया को,
गीत सुनते इस दुनिया को,
झींगुर की बिखरी सी लय पर
नृत्य दिखाते इस दुनिया को।
सो रहे पेड़ की पत्ती भी
वो भाव देख कर झूम रही,
और बतलाती,धीरे से फल से,
देखो....धरती घूम रही।