सोमवार, 4 अप्रैल 2011

रास


कर रहे रास सरिता-समीर
इस चंदा की परछाँई में,
मीन भर रही रंग अनेकों
रात की इस तनहाई में।
तारों की झिलमिल-झिलमिल से
हो रहा है जग,जगमग-जगमग,
ढूंढे जाते राज़ अनेकों
जुगनू
की परछाँई में।
अनिल-नीर अठखेली करते,
प्रीति जताते,आँहें भरते,
पल पल में आमंत्रण करते,
एक दूजे के होते हर पल,
..रास सिखाते इस दुनिया को,
गीत सुनते इस दुनिया को,
झींगुर की बिखरी सी लय पर
नृत्य दिखाते इस दुनिया को।
सो रहे पेड़ की पत्ती भी
वो भाव देख कर झूम रही,
और बतलाती,धीरे से फल से,
देखो....धरती घूम रही।

मंगलवार, 22 फ़रवरी 2011

राज़


अब समझ आया
बारात के शोर का राज़,

परिवर्तन की पीड़ा कम करने का
उपक्रम किया जाता है।
गहरी नदी को पार करते
ये उस माझी का गीत है,
जो उफनाती नदी के भय को दूर कर

अपनी लय में उस पार पहुंचाता है।
अब समझ आया .......
ये वो तीव्र चीख़ है

जो गहरे से गहरे ज़ख़्म को
दूर करने का प्रयास कर
मरहम लगाती है।
अब समझ आया........
ये शोर, उस इलाज की तरह है,

जब इंजेक़्शन लगवाने के पहले
पापा बच्चों को इठलाते हैं।
अब समझ आया.........
जब तक भड़भड़ में भूले ख़ुद को,
तब तक नया द्वार है आऐ।
फिर नए रूप और नए रंग में
नयी ज़िन्दगी पाए।

शनिवार, 12 फ़रवरी 2011

शिल्प


रिश्तों में जब भिन्न-भिन्न से चिन्ह उकेरे जाते हैं,
जीवन में तब सुन्दर-सुन्दर शिल्प वहां बन जाते हैं।
शिल्पकार के शिल्पों को जब संबंधों की धार मिले,
तब संबंधों के सेतुबंध को सुन्दर सा आधार मिले,
आधार वही तब संबंधों का मूर्ति रूप साकार करे,
तब संबंधों के मूर्ति रूप में ईश्वर भी अवतार धरे।
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