सोमवार, 24 अगस्त 2015

नन्हे देव


नन्हे मुन्ने बच्चों की दुनिया अजब अनोखी है

दूर देश की परियों में दुनियां उनने देखी है
सपनो के महलों में वो
सिंघासन सजवाते हैं. 
गैर नहीं उनका कोई 
अपना सब को बनाते हैं 
चंदा उनके मामा हैं 
मौसी बिल्ली को कहते 
नन्ही प्यारी गुड़िया के
बिना नहीं है वो रहते.
सोते जब, दुनियां सोए 
जगते धूम मचाते हैं
भूल यदि कोई करते 
हंस के,सब भुलवाते हैं 
ऐसे नन्हे देवो का 
मैं नित नित अर्चन करता हूँ 
जो धरती को स्वर्ग बनाते हैं
मैं उनका वंदन करता हूँ.

शनिवार, 1 अगस्त 2015

ये रात भी है देखिये क्या कमाल की .
दिखे न जब कहीं कुछ,सपने दिखा करें

सपने गढ़ना जारी है

कितने सपने टूट गए
कितने अपने छूट गए
कहर से कुदरत के कारण
न जाने कितने रूठ गए
कितने तोतले बोल गए
कितने जीवन अनमोल गए
डोली जो धरती कुछ पल
हर दिल में पीड़ा घोल गए
मोती आँसू बन बैठे
हिमशिखरों पर दाग लगा
सिसक उठा आकाश सिहर कर
धरती का मन काँप उठा
बस एक दिलासा मन को है
प्रकृति की चुनौती प्रकृति (मानव)को है
सपने लगते टूटे हों
पर नए सपने गढ़ना जारी है
मान बढ़ा-सम्मान बढ़ा,
जिसका वेतनमान बढ़ा,
पर दिल का बढ़ना ठहरा है,
लगता कोई पहरा है.

अरुणोदय की लाली


भोर भई
भया उजियारा
सोने लौट गया हर तारा,
चहक उठी चिड़िया हर डाली
बिखरी अरुणोदय की लाली.
आती हो तुम क्यों धरा पर ऐ रौशनी,
महफूज़ है नहीं यहाँ पे कोई चांदनी. 
शबनम भी है ज़मी पे आने को बेताब,
अफ़सोस टूट जायेगा उसका हर एक खाब.
न जाने किस घडी में कुछ लोग आ गए,
गैरों की क्या कहें अपने को खा गए .

सौदागर

मैं सपनों को पंख लगाने वाला सौदागर,
लोगो में विश्वास जगाने वाला सौदागर.

सपनो के सौदागर


सावन की शुरुआत से पहले आंसू बरसें झर झर 
श्रद्धा अपनी व्यक्त कर रहा बच्चा बच्चा घर घर
परी कथा की गाथा वाला देश का हर इक बच्चा
सपनो के सौदागर को प्यार कर रहा सच्चा.
श्रद्धांजलि महामानुष कलाम

शुक्रवार, 24 जुलाई 2015

जहाँ

बिखरी...किरकिरी चूड़ी की,मखमली सुनहरी चादर में,
बिंदिया...नन्ही सुर्ख लाल,झांक रही है सिलवट में,
धब्बे....लाल आलते के,कर रहे अलग श्रंगार यहाँ
धरती ...ये है या अम्बर,या है ये कोई और जहाँ.