शुक्रवार, 13 अप्रैल 2012

रात को ग़र ये गगन स्याह होता कहीं,
इस ख़ूबसूरत चाँद का नामोनिशां होता नहीं

सोमवार, 2 अप्रैल 2012

जब भी दूरी का एहसास करता हूँ,
चाँद- तारे तसल्ली देते हैं
कहते हैं -मुझे देखने वाले,
वे भी हमें देखते हैं

फैशन

ग़र सादगी अंदाज़ हो जाए,
नए फैशन का आगाज़ हो जाए

गुरुवार, 15 मार्च 2012

जीवन



इस धरा पे क्या मैं सवाल छोड़ जाऊंगा,
क्या था,
क्यूँ था,
कैसा था,
बवाल छोड़ जाऊंगा।
हर कोई उलझ जायेगा,
सुलझाने में ये पहेली,
पर पहेली रहेगी सदा की सहेली,
उत्तर न मिलेगा,
क्योंकि,था वो गया,
बस लकीर पीटने का,
वक्त रह गया।
....ऐसे गए तो क्या गए,
सवाल छोड़ के,
अपनों के बीच में,
भूचाल छोड़ के
जाएँ जब धरा से उत्तर असंख्य हों,
जीवन से प्रस्फुटित प्रेरक प्रसंग हों
हर प्रश्न उत्तरित हो काल से मेरे,
सवाल दूर हों सभी ख़याल से मेरे।
ये भाव मन में रख के,
जीवन को ग़र जिया,
समझूँगा तब,
थोड़ा काम कर लिया

गुरुवार, 8 मार्च 2012

पूर्णता के अंश


मुझे इस बात पर गर्व है,
फ़क्र
है, कि कितनों ही कि आस हूँ,
विश्वास हूँ,
भरोसा और संकल्प हूँ
नई परिभाषाएँ और नये सृजन का स्रोत,
संबंधों की नई व्याख्या,
पूरकता का पात्र,
विजय नाद,उद्दघोष
किसी का देव,
किसी का भगवन,
किसी का राजा,
किसी का गुरु,
किसी का लड्डू गोपाल,
किसी का कृष्,
किसी का संगी,
किसी का साथी,
और जाने क्या क्या
...... पर ईश्वर इंसान रखे
क्योकि उसने हमें शुद्ध मानव (इन्सान ) बना कर इस धरती पर भेजा।
.....शुद्ध मानव
उसके द्वारा प्रदत्त कुछ भी अपूर्ण,अशुद्ध हो ही नहीं सकता
क्योंकि हम पूर्णता के अंश हैं