सार
क्षितिज पे पहुँचने की चाह कैसी, हम भी तो किसी के क्षितिज पर हैं, चलो क्षितिज से ही शुरुआत की जाए.
शनिवार, 3 जुलाई 2010
स्वप्न
अंतरिक्ष
में
नाव
चले
और
जल
में
चले
विमान
,
पेड़ो
पे
लटकी
हो
टाफी
,
फूल
किसी
दुकान
।
ऐसे
यदि
कुछ
अजब
सलोने
सपने
हो
साकार
,
बदला
होगा
इस
दुनिया
का
पूरा
ये
आकार
।
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