सार
क्षितिज पे पहुँचने की चाह कैसी, हम भी तो किसी के क्षितिज पर हैं, चलो क्षितिज से ही शुरुआत की जाए.
रविवार, 4 जुलाई 2010
बरखा
घटा
सुहानी
बादल
घुमड़े
,
चीं
चीं
कर
चिड़िया
दल
उमड़े
,
ठंडी
ठंडी
हवा
बहे
जब
,
बरखा
रानी
आ
जाती
तब
।
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