रवि(सूर्य) की आस लगाऐ वसुधा(पृथ्वी),
बैठी आँख बिछाऐ वसुधा।
कहती-
नित जब तुम करते स्पर्श हमारा,
सृजित होऐ तब जीवन धारा।
जब न दूत(सूर्य कि किरण) भी आता तेरा ,
कोई संदेश न लाता तेरा,
अंधकार छा जाता मन में,
शिशिर लिपट है जाता तन में,
साँसें धीमी पड़ जाती है,
पलकें झुक-झुक सी जाती हैं ।
तुझको भी दुःख होता है
जब तेरा वैभव सोता है।
पीड़ा समझूँ तेरी सारी,
कि तेरी है कुछ लाचारी।
इस धूल भरी आंधी(घना कोहरा) में तेरी राह भटक सी जाती है,
तू करता है कोशिश फिर भी, पर बात नहीं बन पाती है।
मैं जानू-
तू लगा सतत मुझको पाने को,
जीवन में मेरे आने को,
डिगा न सकता कोई तुझको,
अलग नहीं कर सकता मुझको,
मिलन हमारा सतत रहेगा,
जब तक जीवन सृजित रहेगा।
मिटा सके संयोग हमारा ऐसी आंधी कब तक आएगी,
बाधाऐ चाहें जितनी हों सब की सब मिटती जाएगीं।
बैठी आँख बिछाऐ वसुधा।
कहती-
नित जब तुम करते स्पर्श हमारा,
सृजित होऐ तब जीवन धारा।
जब न दूत(सूर्य कि किरण) भी आता तेरा ,
कोई संदेश न लाता तेरा,
अंधकार छा जाता मन में,
शिशिर लिपट है जाता तन में,
साँसें धीमी पड़ जाती है,
पलकें झुक-झुक सी जाती हैं ।
तुझको भी दुःख होता है
जब तेरा वैभव सोता है।
पीड़ा समझूँ तेरी सारी,
कि तेरी है कुछ लाचारी।
इस धूल भरी आंधी(घना कोहरा) में तेरी राह भटक सी जाती है,
तू करता है कोशिश फिर भी, पर बात नहीं बन पाती है।
मैं जानू-
तू लगा सतत मुझको पाने को,
जीवन में मेरे आने को,
डिगा न सकता कोई तुझको,
अलग नहीं कर सकता मुझको,
मिलन हमारा सतत रहेगा,
जब तक जीवन सृजित रहेगा।
मिटा सके संयोग हमारा ऐसी आंधी कब तक आएगी,
बाधाऐ चाहें जितनी हों सब की सब मिटती जाएगीं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें