सार
क्षितिज पे पहुँचने की चाह कैसी, हम भी तो किसी के क्षितिज पर हैं, चलो क्षितिज से ही शुरुआत की जाए.
बुधवार, 7 जुलाई 2010
नाराज़ी के राज़
नाराज़ी
के
राज़
भी
हमको
ख़ूब
सुहाने
लगते
हैं
,
जब
रूठ
गया
होता
है
कोई
लोग
मनाने
लगते
हैं
।
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