शनिवार, 1 अगस्त 2015

सपने गढ़ना जारी है

कितने सपने टूट गए
कितने अपने छूट गए
कहर से कुदरत के कारण
न जाने कितने रूठ गए
कितने तोतले बोल गए
कितने जीवन अनमोल गए
डोली जो धरती कुछ पल
हर दिल में पीड़ा घोल गए
मोती आँसू बन बैठे
हिमशिखरों पर दाग लगा
सिसक उठा आकाश सिहर कर
धरती का मन काँप उठा
बस एक दिलासा मन को है
प्रकृति की चुनौती प्रकृति (मानव)को है
सपने लगते टूटे हों
पर नए सपने गढ़ना जारी है

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