रविवार, 14 अगस्त 2016

चलते रहना,ज़िम्मेदारी है

सूरज ना बोले थकता हूँ,
चन्दा ना बोले रुकता हूँ,
अविरल नदिया करती कल-कल,
धरा घूमती रहती हर पल,
तारों का टिम-टिम जारी है,
लहरों की गर्जन भारी है,
पवन कभी न सहथाता है,
समय कभी ना रुक पाता है,
सपनों का आना जारी है,
नियम प्रकृति का चलते रहना,हर इक की ज़िम्मेदारी है

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