सार
क्षितिज पे पहुँचने की चाह कैसी, हम भी तो किसी के क्षितिज पर हैं, चलो क्षितिज से ही शुरुआत की जाए.
शुक्रवार, 14 जून 2013
घर से निकले तो आग लग गयी मोहल्ले में,
लौट के देखा तो छज्जे पे वो खड़े थे।
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