आखेट के तेरे नयन से बच सके मुमकिन नहीं,
मेंहदी बिन हाथ कोई रच सके मुमकिन नहीं।
मुमकिन नहीं कोई भुला दे रात की वो चांदनी,
मुमकिन नहीं कोई भुला दे ख़ूबसूरत रागनी।
कैसे पपीहा भूल सकता बूंद स्वाति की कभी,
कैसे धरा है भूल सकती प्यार दिनकर का कभी।
बाग़ में खिलती कली को भूल सकता है कोई,
मुस्कुराने की अदा को भूल सकता है कोई ,
...भूलने की बात का जो ज़िक्र होता है कभी,
भूल ही को भूल जाता है ये अदना सा कवि।
vastav men aise nainon se koi nahi bach sakta- vijai dixit
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