रविवार, 19 दिसंबर 2010

१-२-३

- ग़र्म हैं हर तरफ चर्चाऍ हमारी ,
हम कुछ नहीं कहते,फिर भी वो बहुत है

- हर लम्हा ख़ुशगवार है, तेरी क़ायनात का,
दुःख दे रहे हैं जो,तेरी क़ायनात नहीं

- ताज पहने हैं हम,फ़कीरी से ख़ुदा,
ग़र फ़कीरी नहीं,बेताज हो गए

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