सार
क्षितिज पे पहुँचने की चाह कैसी, हम भी तो किसी के क्षितिज पर हैं, चलो क्षितिज से ही शुरुआत की जाए.
सोमवार, 20 दिसंबर 2010
१- २
१
-
महफ़िल
सजी
हुई
है
,
इक
क़सर
रही
,
आप
आ
गए
जो
,
शमा
बिख़र
गई
।
२
-
सुन
धड़कनों
की
धक
-
धक
,
ये
कह
रही
हैं
क्या
,
आज
मिलने
को
कोई
,
हमसे
आ
रहा
।
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