सार
क्षितिज पे पहुँचने की चाह कैसी, हम भी तो किसी के क्षितिज पर हैं, चलो क्षितिज से ही शुरुआत की जाए.
शुक्रवार, 25 जून 2010
ख़ाब
ज़िंदा से हर ख़ाब ले हर ज़िन्दगी ज़मी पे है ।
हर
ख़ाब पूरे हो यहीं ये चाह कहीं पे है ।
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