इस धरा पे क्या मैं सवाल छोड़ जाऊंगा,
क्या था,
क्यूँ था,
कैसा था,
बवाल छोड़ जाऊंगा।
हर कोई उलझ जायेगा,
सुलझाने में ये पहेली,
पर पहेली रहेगी सदा की सहेली,
उत्तर न मिलेगा,
क्योंकि,था वो गया,
बस लकीर पीटने का,
वक्त रह गया।
....ऐसे गए तो क्या गए,
सवाल छोड़ के,
अपनों के बीच में,
भूचाल छोड़ के।
जाएँ जब धरा से उत्तर असंख्य हों,
जीवन से प्रस्फुटित प्रेरक प्रसंग हों।
हर प्रश्न उत्तरित हो काल से मेरे,
सवाल दूर हों सभी ख़याल से मेरे।
ये भाव मन में रख के,
जीवन को ग़र जिया,
समझूँगा तब,
थोड़ा काम कर लिया।
bhai itni sanjidgi kyon hai....khair bhav bahut achchha hai....vijai kumar dixit
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