सार
क्षितिज पे पहुँचने की चाह कैसी, हम भी तो किसी के क्षितिज पर हैं, चलो क्षितिज से ही शुरुआत की जाए.
शुक्रवार, 8 अक्टूबर 2010
हम अक्सर झगड़ते हैं तुझसे,
जानते हो क्यो;
तेरे पास रहने का बहाना ढूंढते हैं।
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