वे जो टूटते तारे गिरते हैं ज़मीन पर,
ख़ुद टूट कर भी कितनों कि आस जोड़ जाते हैं।
जब टिमटिमाते थे,
आहलादित करते थे मन को।
...वो हल्का-हल्का सा झिलमिलाना,
कितनों के बीच भी अपना काम करते जाना।
ये भी न पता उनको
कोई देखता होगा,
बस ....ख़ुद उल्लास में इस विश्वास में
जीते हैं जीवन को अपना सुन्दर,
क्योकि जानते हैं
जीने कि कला है उनके अन्दर।
.....नहीं ज़रूरत कभी किसी को खुश करने की,
यदि ख़ुशी से महकें ख़ुद तो
ख़ुशबू हर लेती पीड़ा हर जन की ।
ख़ुद टूट कर भी कितनों कि आस जोड़ जाते हैं।
जब टिमटिमाते थे,
आहलादित करते थे मन को।
...वो हल्का-हल्का सा झिलमिलाना,
कितनों के बीच भी अपना काम करते जाना।
ये भी न पता उनको
कोई देखता होगा,
बस ....ख़ुद उल्लास में इस विश्वास में
जीते हैं जीवन को अपना सुन्दर,
क्योकि जानते हैं
जीने कि कला है उनके अन्दर।
.....नहीं ज़रूरत कभी किसी को खुश करने की,
यदि ख़ुशी से महकें ख़ुद तो
ख़ुशबू हर लेती पीड़ा हर जन की ।