सार
क्षितिज पे पहुँचने की चाह कैसी, हम भी तो किसी के क्षितिज पर हैं, चलो क्षितिज से ही शुरुआत की जाए.
शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013
लुत्फ़
मैंने कंकरी उछाल दी प्रेम ताल में,
लहरों की तरंगों का लुत्फ़ लूट रहा हूँ ।
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