सार
क्षितिज पे पहुँचने की चाह कैसी, हम भी तो किसी के क्षितिज पर हैं, चलो क्षितिज से ही शुरुआत की जाए.
शुक्रवार, 13 अप्रैल 2012
रात
को
ग़र
ये
गगन
स्याह
न
होता
कहीं
,
इस
ख़ूबसूरत
चाँद
का
नामोनिशां
होता
नहीं
।
सोमवार, 2 अप्रैल 2012
जब
भी
दूरी
का
एहसास
करता
हूँ
,
चाँद
-
तारे
तसल्ली
देते
हैं
।
कहते
हैं
-
मुझे
देखने
वाले
,
वे
भी
हमें
देखते
हैं
।
फैशन
ग़र
सादगी
अंदाज़
हो
जाए
,
नए
फैशन
का
आगाज़
हो
जाए
।
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